मैडॉक फिल्म्स ने अपनी नई हॉरर-कॉमेडी फिल्म 'थामा' के माध्यम से अपने ब्रह्मांड का और विस्तार किया है। यह फिल्म न केवल डर और रोमांच का अनुभव कराती है, बल्कि पात्रों के बीच गहरे भावनात्मक रिश्तों को भी उजागर करती है। निर्देशक आदित्य सरपोतदार ने कहानी को इस तरह से बुना है कि हॉरर, फैंटेसी, कॉमेडी और रोमांस का संतुलन बनाए रखा गया है।
कहानी की शुरुआत
कहानी की शुरुआत आलोक गोयल (आयुष्मान खुराना) से होती है, जो एक छोटे शहर का पत्रकार है। एक अप्रत्याशित घटना के दौरान उसकी मुलाकात तड़का (रश्मिका मंदाना) से होती है, जो एक सदियों पुरानी और शक्तिशाली बेताल है। तड़का के रहस्य और शक्तियाँ धीरे-धीरे कहानी में खुलती हैं, जिससे आलोक और दर्शकों के लिए रोमांच और जिज्ञासा बढ़ती है।
पहला भाग
फिल्म का पहला भाग घरेलू हास्य और पारिवारिक भावनाओं पर केंद्रित है। परेश रावल ने आलोक के पिता के रूप में शानदार कॉमिक टाइमिंग दिखाई है, जबकि गीता अग्रवाल मां के किरदार में परिवार की स्थिरता और स्नेह को दर्शाती हैं। इन दृश्यों में जंगल और अलौकिक खतरे के बीच संतुलन बनाए रखा गया है।
इंटरवल के बाद का मोड़
इंटरवल के बाद कहानी तेजी से आगे बढ़ती है। आलोक का रूपांतरण और उसकी नई बेताल शक्तियाँ दर्शकों को रोमांच के चरम पर ले जाती हैं। भेड़िया (वरुण धवन) के साथ उसका मुकाबला तकनीकी रूप से प्रभावशाली और विज़ुअली आकर्षक है। यक्षासन (नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी) की उपस्थिति कहानी में गहराई और गंभीरता जोड़ती है, और रक्तबीज तथा सर्कटा के संकेत आने वाले संकट का पूर्वाभास देते हैं।
सपोर्टिंग किरदारों की भूमिका
सपोर्टिंग किरदारों ने भी फिल्म को मजबूती दी है। सत्यराज का एल्विस किरदार हास्य और रहस्य को संतुलित करता है, जबकि अभिषेक बनर्जी और वरुण धवन के कैमियो कहानी में प्राकृतिक मोड़ जोड़ते हैं। नोरा फतेही का कैमियो केवल ग्लैमर का नहीं है, बल्कि स्त्री 2 के साथ यूनिवर्स को भावनात्मक रूप से जोड़ता है।
तकनीकी पहलू
फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर और वीएफएक्स कहानी को पूरी तरह से समर्थन करते हैं। जंगल, बेताल और भेड़िया के दृश्य तकनीकी रूप से सटीक और दर्शकों के लिए आकर्षक हैं। गाने कहानी का हिस्सा हैं, और किसी भी गाने का उपयोग केवल शोभा के लिए नहीं किया गया है।
केंद्र विषय
थामा का मुख्य विषय प्रेम, नैतिकता और मानवीय भावनाओं का संतुलन है। तड़का द्वारा आलोक का पुनर्जीवन रोमांटिक ट्विस्ट के साथ नैतिक और दार्शनिक सवाल भी खड़े करता है। फिल्म जीवन, अमरत्व, मिथक और मानवता के बीच संतुलन दिखाती है। आयुष्मान खुराना और रश्मिका मंदाना ने किरदारों में प्राकृतिक और प्रभावशाली रियेक्टिविटी दिखाई है, वहीं परेश रावल और नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने कहानी को मजबूती और गंभीरता दी है।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, थामा मैडॉक फिल्म्स के हॉरर यूनिवर्स का एक ठोस और विस्तारित अध्याय है। यह फिल्म न केवल डर और रोमांच देती है, बल्कि भावनात्मक और तकनीकी रूप से भी दर्शकों को संतुष्ट करती है। दीवाली के अवसर पर इसे परिवार और दोस्तों के साथ देखना एक समझदारी भरा और मनोरंजक निर्णय होगा।